वी सी दरवान सिंह नेगी की 143 वीं जयंती पर उत्तराखण्ड भूतपूर्व सैनिक संगठन ने आयोजित की गोष्ठि

Uttarakhand Ex-Servicemen Organization organized a seminar on the 143rd birth anniversary of V.C. Darwan Singh Negi

 

कर्नल डी एस बर्त्वाल, इतिहासकार डॉ योगेश दशमाणा, डाव देवेश जोशी, ब्रिगेडियर एस एस पटवाल, प्रधानाचार्य बीरपाल सिंह रावत, गोविंद सिंह तोपाल, पद्म कल्याण सिंह रावत, मैती आदि कई वक्ताओं ने विक्टोरिया क्रॉस नायक दरबान सिंह नेगी के जीवनी पर प्रकाश डालते हुए अपने विचार रखे। उनके पैतृक गाँव कफारत्तीर-खैंतोलीखाल में हर साल  23 नवम्बर से 26 नवम्बर तक चार दिवसीय शौर्य महोत्सव मनाया जाता है ,जो कि उत्तराखण्ड सरकार द्वारा राजकीय मेला घोषित किया गया है। अपने क्षेत्र के पुरस्कृत वीर सैनिकों का विद्यालय पाठ्यक्रम में उनकी जीवनी सम्मिलित करना, उनके नाम पर रेलवे स्टेशन तथा राष्ट्रीय राजमार्गों को नामित करना, रक्षा अध्ययन में वीरों की गाथा तथा विचारों को सम्मिलित करना, उनके मूल निवास स्थानों में विकास कार्य ,संग्रहालय की स्थापना, राजकीय मेलोन का आयोजन आदि बिंदु सामने आए। सभा के अन्त मेजर जनरल मोहनलाल असवाल ने सभी आगन्तुक महानुभावों का धन्यवाद किया।

इस अवसर पर कर्नल हरेन्द्रसिंह रावत, पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ,इतिहासकार डाव योगेश धस्माना, डॉ. देवेश जोशी, वीसी दरवान सिंह नेगी राजकीय माध्यमिक विद्यालय कर्णप्रयाग के पूर्व प्रधानाचार्य बीरपाल सिंह रावत, वर्तमान प्रधानाचार्य आर डी तोपाल, पूर्व प्रधानाचार्य आर एस खत्री, एस एस कोठियाल, पूर्व आईजी बीएसएफ, ब्रिगेडियर आर एस रावत, ब्रिगेडियर एस एस पटवाल, कर्नल यूएस रावत, जिला सैनिक कल्याण अधिकारी देहरादून, कर्नल बीएम थापा, कर्नल जयद्रथ कर्नल सतीश उप्रेती , कर्नल विवेक गुप्ता, कर्नल मोहित नांगिया, एयर कमोडोर कपूर, कर्नल कुकरेती, पूर्व सैनिक बीपी शर्मा, कैप्टेन रावत, कैप्टेन लिंबू, कैप्टेन वर्मा आदि उपस्थित थे।
बॉक्स में
विदित हो कि विक्टोरिया क्रॉस नायक ( बाद में सूबेदार साहब बहादुर) हमारे देश के प्रथम विक्टोरिया क्रॉस ( परम वीर चक्र के समकक्ष) हैं। बीसी दरवान सिंह का जन्म आज ही के दिन 04 मार्च 1883 को नारायणबगड़ तहसील जिला चमोली, कड़ाकोट पट्टी के कफारत्तीर गाँव में हुआ था। वह 39/1 गढ़वाल राइफल्स में थे जब उनकी पलटन को फ्रांस के फेस्टुवर्ग में जर्मन सैनिकों को खाई से मार भगाना था। 23/24 नवम्बर 1914 की रात्रि उन्होने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए अपनी जान की परवाह न करते हुए फेस्टुवर्ग की खाइयों से जर्मन सैनिकों को आमने सामने की बिनट की लड़ाई में बाहर खदेड़ कर और मार कर अपना परचम लहराया था। वे स्वयं भी लहूलुहान हुए परन्तु खाई में आखिर दुश्मन को मार भगाने तक डटे रहे। उनके इस शौर्य के लिए 05 दिसमबर 1914 को तत्कालीन सम्राट किंग जॉर्ज पंचम स्वयं सभी मर्यादाओं को दरकिनार करते हुए लड़ाई के मैदान में पहुँचे और अपने हाथों से उन्हें विक्टोरिया क्रॉस के सर्वाेच्च सैन्य सम्मान से नवाजा। जब राजा ने उन्हें उनके शौर्य के एवज में कुछ मांगने को कहा तो उन्हौंने अपने क्षेत्र की कठिनाइयों के मध्य नजर इंग्लिश मीडियम का मिडिल स्कूल कर्णप्रयाग में व ॠषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन स्वीकृत करने की मांग रखी। तत्काल दोनों मागें स्वीकृत हुई। 26 अक्टूबर 1918 को गढ़वाल कलक्टर पौड़ी ने कर्णप्रयाग में अंग्रजी माध्यम के मिडिल स्कूल का शिलान्यास किया और 1919 से 1924 तक रेलवे लाइन की कर्णप्रयाग तक सर्वे भी हुई जो कि अब धरातल पर उतरने वाली है। यही मिडिल स्कूल 1943 में हाई स्कूल व 1956 में इंटरमीडिएट बनी। अब इस विद्यालय का नाम विक्टोरिया क्रॉस दरवान सिंह नेगी राजकीय माध्यमिक विद्यालय कर्णप्रयाग है। इस विद्यालय से विद्यार्थी हर क्षेत्र में उच्चस्थ पोस्ट तक कार्यरत रहें हैं और सभी ने विद्यालय का नाम रोशन किया है।