An evening of resistance poems organized on the 80th death anniversary of Sridev Suman
देहरादून। दूून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से आज अमर शहीद श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस के अवसर पर उनकी 80 वीं पुण्य तिथि के मौके पर उनकी शहादत को याद किया गया। टिहरी रियासत के जनविरोधी नीतियों के खिलाफ उनके संघर्ष तथा राजशाही की तरफ से उन पर हुए अत्याचारों का भावपूर्ण स्मरण करते हुए प्रतिरोध की कविताओं पर एक काव्य पाठ का आयोजन किया गया।
इसमें जनकवि डाॅ. अतुल शर्मा, विनीत पंछी,डाॅ. राजेश पाल,शादाब अली मशहदी,दर्द गढ़वाली और नीरज नैथानी ने अपनी शानदार कविताओं का सस्वर पाठ किया। कार्यक्रम के आरम्भ में सुमन सुधा पत्रिका के 2024 के वार्षिक अंक का अनावरण भी किया गया जिसे श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस पर हर साल प्रकाशित किया जाता है। इसके सम्पादक साहित्यकार डाॅ. मुनिराम सकलानी ने श्रीदेव सुमन के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उन्हें स्वाधीनता आन्दोलन के दौर में टिहरी रियासत की जनता में राजशाही की दमनकारी नीतियों, जबरन थोपे गए टैक्स बेगार प्रथा और नई वन व्यवस्था का प्रतिरोध करने वाला एक महान क्रान्तिकारी बताया।
उल्लेखनीय है कि मात्र चौदह साल की उम्र में ही सुमन के अन्दर देश-प्रेम का जज्बा पैदा हो गया था। कई बार गिरफ्तार होकर जेल में गये। रिहाई होने पर उनका मन टिहरी रियासत की सामन्ती व्यवस्था से जनता को मुक्त करने के लिए आकुल हो उठा। टिहरी जाते वक्त पुलिस अधिकारी ने उनके सर से टोपी उतारकर धमकी दी और कहा कि आगे बढे तो गोली मार देंगे। उन्हें टिहरी जेल में ठूँस दिया। भूखा-प्यासा रखकर डरा धमकाकर जबरन माफी मांगने का दबाव बनाया गया। जेल अधिकारियों ने खिन्न होकर उनके कपड़े फाड़ डाले और कोड़े बरसाकर पांवों में पैंतीस सेर की बेडियां डाल दी गई। राजद्रोह का केस चलाकर उन्हें कैद की सजा हुई। सुमन ने जेल कर्मचारियों के व्यवहार के खिलाफ अनशन करना प्रारम्भ कर दिया। कठोरतम यातनाएं देकर उन्हें अनशन तुडवाने के प्रयास किये गये। लेकिन स्वाभिमानी दिल वाले सुमन ने हार न मानी, अन्ततः चौरासी दिनों के आमरण अनशन से सुमन की हालत बहुत बिगड़ गई और अंत में अपनी शहादत देकर वे सदा के लिए अमर हो गए।
काव्य पाठ सत्र में आमंत्रित कवियों में दर्द गढ़वाली ने श्री देव सुमन के स्वाभिमानता पर अपनी रचना सुनाते हुए कहा “आजादी का मतवाला था श्रीदेव सुमन भी आला था।तारा मां की कोख से जन्मा टिहरी को वो भाया था। दम तोड़ दिया उसने लेकिन झुके नहीं राजा के द्वार। वीर सुमन तुमको नमन जन-जन करे बारंबार।” जन कवि और आन्दोलनों में अपने गीत मुखरित करने वाले डाॅ. अतुल शर्मा ने अपनी चिर परिचित ओजपूर्ण स्वर में इस कविता को सुनाकर श्रोताओं में जोश भर दिया। “एक उठता हुआ बस चरण चाहिए, जयगीतों का वातावरण चाहिए। ये कला ही उठाती है आवाज को, आसमां को झुकाने का दम चाहिए। ये रसोई भी रोई है सदियों तलक,शब्द के बर्तनों में वजन चाहिए”।
साहित्यकार डाॅ. राजेश पाल ने अपनी कविता ‘पानी हूँ’ की पंक्तियां इस तरह सुनाईं “पानी हूँ,आग लग जाती है मेरे भी भीतर, मेरी धार पत्थर को काटती है।पानी हूँ मुझमें खेलो पर मुझसे मत करो खिलवाड़ मेरी धार पत्थर को काटती है।” इस कविता का आशय है कि व्यवस्था में चीजे सतही तौर पर पानी जैसी कोमल और सरल दिखाई देती है वे प्रतिरोध के लिए अपने आंतरिक गुणधर्म में विरोधी भी हो जाती है। उर्दू के सुपरिचित रचनाकार शादाब मशहदी ने अपनी रचना सुनाते हुए कहा “नदियों की अविरल धारा को दुलराया,मैंने तटबंधों का गीत नहीं गाया,जिनसे होती हों स्वतंत्रताएं बाधित ऐसे प्रतिबंधों को मैंने ठुकराया। दरबारी शायर बनकर कुछ दिन खुस हो जाओ लेकिन, तुम पर भी हथियार किसी दिन ये दरबार उठाएगा। जुल्म अगर बढ़ जाएगा तो इन्कलाब की आवाजें, एक नहीं दो चार नहीं सारा संसार उठाएगा।” सुपरिचित यायावर और कवि नीरज नैथानी ने अपनी कविता सुनाते हुए कहा कि,लिखूंगा बेशक बदस्तूर बेइंतहा बेहिसाब लिखूंगा मैं,नश्तर नोक,नमक,तेजाब लिखूंगा। वो समझते हैं हौंसले पस्त हैं मेरे, मैं हूं सिपाही कलम का रोज इंकलाब लिखूंगा।” इसके बाद अपनी चुटीले अन्दाज में कवि विनीत पंछी ने भी अपनी जोशपूर्ण कविता सुनाकर श्रोताओं की खूब वाहवाही बटोरी।
काव्य पाठ के बाद 15 मिनट की अवधि की फिल्म भी दिखाई गई। कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने स्वागत किया और कार्यक्रम का संचालन निकोलस हॉफलैण्ड ने किया।
इस अवसर पर सभागार में कई फिल्म प्रेमी रंगकर्मी बुद्धिजीवी व साहित्य प्रेमी,रंगकर्मी, पुस्तकालय सदस्य और साहित्यकार व युवा पाठक और डॉ.नंद किशोर हटवाल, रविन्द्र जुगरान,शिव मोहन सिंह, शैलेंद्र नौटियाल, शिव जोशी, अम्मार नक़वी, गणनाथ मनोडी, डॉली डबराल,सत्यानन्द बडोनी और सुंदर सिंह बिष्ट ,राकेश कुमार व अवतार सिंह आदि उपस्थित रहे।